Wednesday, March 4, 2009

रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में 0.50 परसेंट की कमी
4 Mar 2009, 2301 hrs IST, Ethindi.com
http://hindi.economictimes.indiatimes.com/articleshow/4224356.cms

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मुंबई : रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बुधवार को रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में 0.50-0.50 परसेंट की कटौती का ऐलान किया। इसके तहत रेपो रेट अब 5.5 परसेंट से घटकर 5 परसेंट हो जाएगी। रेपो रेट वह दर होती है, जिसके तहत आरबीआई बैंकों को कम अवधि के लोन देता है। रिवर्स रेपो रेट पहले 4 परसेंट थी, जो अब घटकर 3.5 परसेंट हो जाएगी। रिवर्स रेपो रेट वह दर होती है, जिसके तहत बैंकों के जमा पर आरबीआई ब्याज देता है। नई दरें तत्काल प्रभाव से लागू हो गई हैं।

केंद्रीय बैंक के बयान में कहा गया है कि ग्लोबल फाइनेंशियल क्राइसिस से भारतीय इकॉनमी में आई सुस्ती की वजह से यह कदम उठाया गया है। इसका मकसद आर्थिक विकास की रफ्तार को घटने से रोकना है। आरबीआई के इस कदम से बाजार में कैश का प्रवाह बढ़ेगा और लोन और भी सस्ते हो सकते हैं।

विस्तार से जानिए रेपो रेट की बारीकियां

रेपो रेट वह बेंचमार्क दर होती है, जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) कम अवधि के लिए बैंकों को धन उधार देता है। रेपो रेट उन फंड की वाषिर्क ब्याज दर होती है, जो कर्जदाता उधार लेने वाले से वसूल करता है। आमतौर पर रेपो के जरिए लिए जाने वाले उधार की दर अनसिक्योर्ड इंटरबैंक कर्ज से कम होती है। इसकी वजह यह है कि यह गिरवी के आधार पर होने वाला लेन-देन है और इसमें प्रतिभूति जारी करने वाले की साख विक्रेता से अधिक होती है।

रेपो रेट को प्रभावित करने वाली बातों में उधार लेने वाले की साख, गिरवी रखी गई सिक्योरिटी की तरलता और मुदा बाजार के अन्य इंस्ट्रूमेंट्स की तुलनात्मक दरें शामिल होती हैं।

रेपो अलग-अलग अवधि के लिए हो सकती है:

ओवरनाइट रेपो : यह केवल एक दिन के लिए होती है।

टर्म रेपो : अगर अवधि निश्चित है और इस पर पहले ही सहमति हो चुकी है तो इसे टर्म रेपो कहा जाता है। इसमें दोनों में से कोई भी पक्ष एक या दो दिन के नोटिस पर रेपो को समाप्त कर सकता है। आमतौर पर टर्म रेपो एक सप्ताह की औसत अवधि के लिए होती है।

ओपन रेपो : ओपन रेपो में कोई भी निश्चित परिपक्वता अवधि नहीं होती। इसमें ब्याज दर मुदा बाजार की स्थितियों के अनुसार प्रतिदिन बदलती रहती है। ऐसे मामलों में कर्जदाता अनिश्चित समय के लिए धन उपलब्ध कराने पर सहमत होता है और समझौता किसी भी दिन तोड़ा जा सकता है।

फ्लेक्सिबल रेपो : इसमें कर्जदाता धन को अलग रख देता है और उधार लेने वाला पहले से तय अवधि में इसे अपनी जरूरत के अनुसार निकालता रहता है।



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