Wednesday, March 4, 2009

29 एफडीआई प्रस्तावों को मिली मंजूरी

29 एफडीआई प्रस्तावों को मिली मंजूरी

बीएस संवाददाता / नई दिल्ली 03 04, 2009






सरकार ने 29 प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) प्रस्तावों को मंजूरी दे दी है।

एफडीआई के ये सारे प्रस्ताव 616 करोड़ रुपये मूल्य के हैं।

तीसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर रही 5.3 फीसदी

बीएस संवाददाता / नई दिल्ली 02 27, 2009






वैश्विक आर्थिक और ऋण संकट का प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर भी स्पष्ट तौर पर देखा जा रहा है।

मौजूदा वर्ष की तीसरी तिमाही में जीडीपी विकास दर 5.3 फीसदी रह गई, जो पिछले वर्ष की समान अवधि में 8.9 फीसदी थी।

अक्टूबर-दिसंबर 2008-09 में विनिर्माण और कृषि क्षेत्र के उत्पादन में भी गिरावट दर्ज की गई।

कृषि क्षेत्र की विकास दर पिछले वर्ष की तुलना में 2.2 फीसदी घट गई। पिछले वर्ष की समान अवधि में कृषि क्षेत्र की विकास दर 6.9 फीसदी थी।

हालांकि इस दौरान सेवा क्षेत्र में वृद्धि दर्ज की गई।

सिंगुर के किसानों को नहीं है नैनो से बैर
सोहिनी दास / कोलकाता February 08, 2009






सिंगुर के किसानों को टाटा मोटर्स या फिर उसकी नैनो परियोजना से कोई ऐतराज नहीं था और वे यह नहीं चाहते थे कि कंपनी लखटकिया कार परियोजना को समेट कर वापस चली जाए।

यह कहना है पश्चिम बंग खेत मजूर समिति (पीबीकेएमएस) की अध्यक्ष अनुराधा तलवार का। उन्होंने बताया कि किसानों का विरोध केवल उनकी जमीन के लिए सरकार की ओर से दिए जा रहे मुआवजे को लेकर था, जो उन्हें काफी कम लग रहा था।

साथ ही उन्होंने कहा कि किसानों ने कभी भी इस परियोजना को लेकर विरोध नहीं जताया। तलवार ने कहा, 'सिंगुर के किसान यह नहीं चाहते थे कि टाटा मोटर्स वह जगह छोड़ कर चली जाए, वे तो बस राज्य सरकार की ओर से दिए जा रहे मुआवजे से खुश नहीं थे और उसे लेने से मना कर रहे थे।'

याद रहे कि टाटा मोटर्स के इंजीनियरों और विदेश से आए विशेषज्ञों को सिंगुर में नैनो के परियोजना स्थल पर पिछले साल 29 अगस्त आधी रात को जिस समूह ने कैद कर रखा था, उसकी अध्यक्षता तलवार ने ही की थी। दरअसल इसी घटना के बाद सिंगुर में परियोजना को लेकर विरोध की गतिविधि और तेज हो गई थी।

इसी दिन टाटा मोटर्स ने सिंगुर इकाई में काम रोकने का फैसला लिया था और बाद में परियोजना को यहां से हटाकर दूसरी जगह ले जाया गया था। नैनो परियोजना को यहां से हटाने के लिए तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी को दोषी ठहराया गया था। और तृणमूल कांग्रेस के विरोध में पीबीकेएमएस ने भी उसका साथ दिया था।

तलवार ने बताया कि उनका संगठन आज भी किसानों को 300 एकड़ जमीन लौटाने की मांग पर अड़ा हुआ है। हालांकि उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि जिन किसानों से जमीन ली गई है उन्हें लौटाना कानूनी तौर पर मुमकिन नहीं है। राज्य सरकार की सहायता से जमीन के मसले पर कोई समझौता ही एकमात्र विकल्प है।

सबने पहना विकास का हार
सत्येन्द्र प्रताप सिंह / नई दिल्ली March 04, 2009






देश की राजनीति का केंद्र कहे जाने वाले बिहार में पहली बार ऐसा हुआ है कि विकास को चुनावी मुद्दा बनाया जा रहा है।

15 साल तक बिहार की सत्ता संभालने वाले लालू प्रसाद जहां पहले के चुनावों में सोशल इंजीनियरिंग की बात करते थे, वहीं आगामी लोकसभा चुनाव के लिए हर जनसभा में अपने किए गए कामों को गिना रहे हैं।

बीते 27 फरवरी को पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने 36 हजार किलोमीटर सड़कों के निर्माण का एक साथ शिलान्यास और उद्धाटन किया। साथ ही उन्होंने अंतरिम रेल बजट में घोषित भागलपुर रेल मंडल का उद्धाटन भी 1 मार्च को कर दिया।

लालू प्रसाद इन मौकों पर राज्य सरकार को कोसना भी नहीं भूलते। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार प्रदेश के विकास के लिए कई योजना मद में भारी राशि दी गई है मगर उनका प्रदेश की सरकार उपयोग नहीं कर पा रही है।

उधर राज्य सरकार भी अपने कार्यों को ही चुनावी मुद्दा बनाने के मूड में है। 26 फरवरी को उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने 2009-20 के लिए 47,446 करोड़ रुपये का बजट पेश किया, जिसमें 16,000 करोड़ योजना मद में तथा 28,020 करोड़ गैर योजना मद में खर्च करने की बात कही गई है।

चुनावों को देखते हुए इस बजट में जेंडर बजटिंग के तहत महिलाओं पर 5,293 करोड़ खर्च करने, ग्रामीण सड़कों पर कुल बजट का 25 प्रतिशत खर्च करने का प्रावधान रखा। इसके अलावा लखीसराय, डिहरी, कटिहार, बेतिया, अररिया और अस्थावा में पालिटेक्निक खोलने की घोषणा की।

महादलित और पिछड़ों के कल्याण के लिए विशेष योजनाएं चलाने की भी घोषणा की गई। 28 फरवरी को मुख्यमंत्री ने बाढ़ प्रभावित सुपौल के छातापुर के सुरपतसिंह उच्च विद्यालत के मैदान में 403 करोड़ रुपये की योजनाओं का शिलान्यास और उद्धाटन किया।

उन्होंने बाढ़ प्रभावितों के बीच गृहक्षति अनुदान, कृषि इनपुट अनुदान तथा भूमि क्षति अनुदान का भी शुभारंभ किया। नीतीश कुमार का कहना है कि हमारा चुनावी मुद्दा विकास और केंद्र द्वारा बिहार की उपेक्षा ही रहेगा।

सड़कों के निर्माण का मोर्चा संभाल रहे पथ निर्माण मंत्री डॉ प्रेम कुमार जहां नए वित्तीय वर्ष में एसएसडीपी फेज 2 में 755 करोड़ रुपये की योजना लेकर आए हैं, वहीं उनका कहना है कि केंद्र सरकार एनडीए की पूर्व केंद्र सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण के लिए धन देने में कोताही बरत रही है।

पहली बार विकास बना चुनावी मुद्दा
लालू प्रसाद गिना रहे हैं पुराने काम
नीतीश ने लगाया केंद्र पर आरोप
मौजूदा बजट से लुभाने की कोशिश


वाइब्रेंट गुजरात का सच: 30 प्रस्ताव हुए रद्द
कल्पेश दामोर / अहमदाबाद March 04, 2009






गुजरात सरकार को चौथे वाइब्रेंट गुजरात समिट के दौरान कृषि क्षेत्र के लिए 35,276 करोड़ रुपये का निवेश आश्वासन भले ही मिला हो, पर पिछले तीन समिट के दौरान जिन परियोजनाओं का प्रस्ताव पेश किया गया था, उनमें से 30 को रद्द किया जा चुका है।

राज्य कृषि विभाग के समझौता पत्र से मिले आंकड़ों के अनुसार 2003, 2005 और 2007 में वाइब्रेंट समिट के दौरान कृषि क्षेत्र की कुल 99 परियोजनाओं पर हस्ताक्षर किए गए थे। इन परियोजनाओं के जरिए 11,476 करोड़ रुपये का निवेश किया जाना था।

हालांकि, ये सभी निवेश प्रस्ताव राज्य सरकार के लिए बहुत लुभावने साबित नहीं हो सके हैं। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुल 99 परियोजनाओं में से 30 परियोजनाओं को रद्द किया जा चुका है। रद्द किए गए परियोजनाओं के जरिए करीब 4,092 करोड़ रुपये का निवेश प्रस्तावित था।

करीब 703 करोड़ रुपये के निवेश से जिन 48 परियोजनाओं की घोषणा की गई थी उनका काम शुरू हो चुका है और 6,081 करोड़ रुपये की 21 परियोजनाएं क्रियान्वयन स्तर पर हैं। साल 2003 के वाइब्रेंट गुजरात समिट में जिन 5 परियोजनाओं की घोषणा की गई थी उनमें से 3 महज घोषणाओं तक ही सिमट कर रह गईं और उन पर काम आगे नहीं बढ़ पाया।

साल 2005 के समिट में 34 परियोजनाओं के लिए घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए गए थे जिनमें से 615 करोड़ रुपये के निवेश वाली 14 परियोजनाओं को अब तक रद्द किया जा चुका है। वाइब्रेंट समिट 2007 में पिछले निवेश सम्मेलनों से भी कहीं अधिक कृषि क्षेत्र में 10,125 करोड़ रुपये के निवेश से 60 परियोजनाओं की घोषणा की गई थी।

इनमें से 3,973 करोड़ रुपये के निवेश वाली 13 परियोजनाओं को आगे नहीं बढ़ाया जा सका, जबकि 31 परियोजनाएं क्रियान्वयन स्तर पर हैं।एक प्रमुख सरकारी अधिकारी ने इस बाबत बताया, 'घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने का मतलब केवल इतना होता है कि कोई कंपनी राज्य में परियोजना लगाने के लिए इच्छुक है।

गुजरात में निवेश की चमक फीकी

2009 समिट में कृषि क्षेत्र के लिए 35,276 करोड़ रु के निवेश की घोषणा
पर उतनी ही तेजी से किया जा रहा है पुरानी परियोजनाओं को रद्द
अब तक 4,092 करोड़ रु की 30 परियोजनाओं को रद्द किया जा चुका है
घोषणापत्र पर हस्ताक्षर के बाद कंपनियां खींच रही हैं निवेश का हाथ

अर्श से फर्श पर पहुंचा नकोदर का दरी कारोबार
आशीष शर्मा / जालंधर March 04, 2009






वैश्वीकरण ने भले ही कई उद्योगों को कारोबार में विस्तार के अवसर दिए हों और इससे कंपनियों का मुनाफा भी बढ़ा हो, पर कुटीर और लघु उद्योगों पर इसकी जबरदस्त मार पड़ी है।

खासतौर पर जालंधर के नकोदर में दरी बुनने का कारोबार नई मशीनों और तकनीकों के आने के कारण बंद होने के कगार पर पहुंच चुका है। एक समय यहां की हाथ से बुनी हुई दरियां देश भर में मशहूर हुआ करती थीं, पर मशीनीकरण ने अब इन इकाइयों पर ताले जड़ दिए हैं। जो कुछ इकाइयां चालू भी हैं उनका भी हाल बुरा है।

कुछ साल पहले नकोदर की हाथ से बनी रंगबिरंगी दरियों की मांग इतनी अधिक हुआ करती थी कि पूरे राज्य भर से लोग इन्हें खरीदने यहां आया करते थे। नकोदर को दरियों के कारण ही कारोबार की दुनिया में पहचान मिली है।

देश के बंटवारे के पहले से ही यहां का दरी उद्योग काफी मशहूर हुआ करता था और इस काम से जुड़े ज्यादातर कारीगर मुस्लिम हुआ करते थे। बंटवारे के बाद जहां कई कारीगर पाकिस्तान चले गए, वहीं कई कारीगर पाकिस्तान से भी यहां आए। सही मायने में इन कारीगरों के आने के बाद से ही यहां के दरी उद्योग में एक तरह का अनोखा बदलाव देखा गया।

पाकिस्तान के सियालकोट से आए भगतमेग समुदाय के लोगों ने बंटवारे के बाद मुख्य रूप से इस कारोबार में नई जान फूंकी। वर्ष 1984 तक तो नकोदर का दरी कारोबार पूरी तेजी के साथ आगे बढ़ रहा था, पर सबसे पहला झटका इसे तब मिला जब पंजाब आतंकवाद की गिरफ्त में आया। उसी दौरान कई कारीगर अपनी इकाइयों को यहां से हटा कर पानीपत या फिर अंबाला चले गए।

ऐसे कारीगरों ने वहीं जाकर अपनी इकाइयां दोबारा से खोलीं। चूंकि नकोदर आकर दरी खरीदने वाले ग्राहकों में राजधानी दिल्ली के लोगों की संख्या अच्छी खासी थी, इस वजह से पानीपत में इन इकाइयों के स्थानांतरित होने से ये यहीं से खरीदारी करने लगे। सैनिक शासन के दौरान भी कई कारीगरों को अपनी इकाइयां बंद करनी पड़ीं।

उद्योग को चोट पहुंचाने की रही सही कसर वैश्वीकरण ने पूरी कर दी। अत्याधुनिक मशीनों के आने से हाथ से तैयार की जाने वाली दरी का काम बुरी तरह प्रभावित हुआ। इन रंगबिरंगी दरियों का रंग ही गायब हो गया। आधुनिक टेक्सटाइल तकनीकों के आने से परंपरागत हथकरघा उद्योग गर्त में जाने लगा।

हजारों कारीगर जो कभी अपने हुनर के लिए जाने जाते थे, किसी दूसरे रोजगार की तलाश में जुट गए। पर जिन लोगों के पास वित्त और संसाधनों की कमी नहीं थी उन्होंने दरी का उत्पादन हाथ से करने के बजाय मशीनों (पावर लूम) से करना शुरू कर दिया।

कुछ उत्पादन इकाइयों का यह मानना है कि पावर लूम के इस्तेमाल से सिर्फ एकबारगी खर्च बैठता है और उसके बाद कम कारीगरों की जरूरत के कारण उत्पादन खर्च भी कम हो जाता है, पर कानूनी तौर पर यह सही नहीं है।

1985 के दरी ऐक्ट के तहत पावर लूम का इस्तेमाल दरी उत्पादन के लिए नहीं बल्कि, केवल टेक्सटाइल उत्पादन के लिए ही किया जा सकता है। उत्पादकों ने इस कानून को चुनौती दी है और यह मामला विचाराधीन है।
http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=15289

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