Wednesday, March 4, 2009

उत्तराखण्ड का नगरीय परिदृश्य

उत्तराखण्ड का नगरीय परिदृश्य
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नगर सामान्यतः उस कस्बे को कहा जाता है जिसमें अनेक जातियों के एवं कृषि से भिन्न व्यवसायों से जीविकोपार्जन करने वाले लोग निवास करते हैं। उन्नीसवीं सदी में भारतवर्ष में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान नगरों की विधिक परिभाषा निर्धारित करी गयी और स्थानीय शासन के संचालन हेतु अधिनियम बनाए गए। वर्तमान में इन्हीं अधिनियमों में वर्णित प्रक्रिया एवं मानकों के अनुसार किसी कस्बे अथवा गांव को नगर घोषित किया जा रहा है।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारतवर्ष को गांवों का देश कहा जाता था क्योंकि वर्ष 1951 की जनगणना के अनुसार भारतवर्ष की ग्रामीण व नगरीय जनसंख्या का अनुपातिक प्रतिशत क्रमश: 89.2 और 10.8 था। वर्ष1951 में उत्तराखण्ड में भी ग्रामीण व नगरीय जनसंख्या का प्रतिशत क्रमश: 88.3 और 11.7 था। किन्तु वर्तमान में भारतवर्षका नगरीय परिदृश्य बदल गया है और अब भारत वर्षको केवल गांवों का देश कहना वास्तविकता को नजरअंदाज करना होगा। सम्पूर्ण देश की भांति उत्तराखण्ड में बीसवीं सदी में न केवल नगरों की जनसंख्या में वृद्धि हुई है बल्कि नगरों की संख्या भी बढी है।
उतरांचल सें 1951-2001 अवधि में ग्रामीण व नगरीय जनसंख्या


उतरांचल में वर्ष 2001 में लगभग एक चौथाई जनसंख्या नगरों में निवास कर रही थी। किन्तु यह भी उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड के सुदूर पर्वतीय क्षेत्रों में मैदानी जनपदों की अपेक्षा नगरीय जनसंख्या कम है।
उत्तराखण्ड की जनपद वार नगरीय और गामीण जनसंख्या व प्रतिशत (वर्ष2001)

उत्तराखण्ड के देहरादून,हरिद्वार और उधमसिंह नगरों में नगरीय जनसंख्या अधिक है जब कि पर्वतीय जनपदो में नगर और नगरीय जनसंख्या कम होने के फलस्वरुप ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत अधिक है ।
नगरीय जनसंख्यानुसार उत्तराखण्ड के जनपदों का क्रम (वर्ष2001)

उत्तर प्रदेश में वर्ष1992 में केन्द्र सरकार द्वारा संविधान (चौहतरवां संसोधन) अधिनियम 1992 लागू किए जाने से पूर्व नगरीय क्षेत्र और नगर निकायों के गठन के लिए निम्न अधिनियम प्रभावी थे । संयुक्त प्रान्त टाउन एरिया अधिनियम, 1914
उ0प्र0 नगर पालिका अधिनियम, 1916,
उ0प्र0 नगर निगम अधिनियम, 1959

उ0प्र0 सरकार द्वारा वर्ष1994 में संयुक्त प्रान्त टाउन एरिया अधिनियम को निरस्त कर संविधान (चौहत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम 1992 के निर्देशों के अनुरूप नोटिफाइड एरिया व टाउन एरिया का नामकरण नगर पंचायत कर नगर पंचायतों को भी उ0प्र0 नगरपालिका अधिनियम की परिधि में लाया गया। फलस्वरूप सन् 1994 से उ0प्र0 में नगरीय क्षेत्र और नगर निकायों के गठन हेतु उ0प्र0 नगर पालिका अधिनियम और उ0प्र0 नगर अधिनियम ही प्रभावी रहे। नवम्बर 2000 में उत्तराखण्ड के गठन होनें पर इस नवसृजित राज्य की सरकार ने इन दोनों अधिनियमों को अंगीकृत कर दिया और वर्तमान में (फरवरी 2003) उत्तराखण्ड में नगरीय क्षेत्रों व नगर निकायों के गठन हेतु उक्त दोनों अधिनियमों के अनुसार ही कार्यवाही हो रही है।


उत्तराखण्ड में नगरीय क्षेत्र



दिसम्बर 2002 तक उत्तराखण्ड में उ0प्र0 नगर पालिका अधिनियम एवं उ0प्र0 नगर निगम अधिनियम के अन्तर्गत नगरों गठित के अतिरिक्त छावनी परिषद क्षेत्र, औद्योगिक नगर भी विद्यमान थे। इन सभी क्षेत्रों की जनसंख्या वर्ष2001 की नगरीय जनसंख्या में सम्मिलित है। यह नगरीय क्षेत्र निम्नवत हैं । 1. नगर निगम - 1 (देहरादून)
2. नगर पालिका परिषद - 32
3. नगर पंचायत - 30
4. छावनी परिषद क्षेत्र - 9
5. औद्योगिक नगरी - 2
6. जनगणना नगर - 12


नगरपालिकायें



संविधान के अनुच्छेद 243-थ के अनुसार गठित और उत्तराखण्ड में कार्यरत नगर निगम, नगर पालिका परिषद एवं नगर पंचायतों में केवल चार नगरपालिकाओं की जनसंख्या वर्ष2001 की जनगणना के अनुसार 1 लाख से अधिक थी जबकि तीन नगर निकायों की जनसंख्या 50,000 से 99,999 ; 14 नगर निकायों की जनसंख्या 20,000 से 59,999 ; 13निकायों की जनसंख्या 10,000 से 19,999 ; 26 निकायों की जनसंख्या, 5000 से 9,999; एवं शेष 16 निकायों की जनसंख्या 5000 से कम थी ।
जनसंख्यानुसार नगरपालिकाओं का वर्गीकरण


उत्तराखण्ड में नगर निकायों का गठन जनसंख्या को आधार मानकर नहीं किया गया है। उत्तराखण्ड की 31नगरपालिका परिषदों में लगभग पचास प्रतिशत नगर निकायों का गठन स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व ब्रिटिश शासन काल में कर दिया गया था।जबकि नगर पंचायतों में केवल झबरेडा का गठन ही स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व हुआ था।
उत्तराखण्ड की नगर निकायों के गठन का वर्ष, वर्तमान क्षेत्रफल और जनसंख्या की स्थिति

छावनी परिषद क्षेत्र



उ0प्र0 नगर पालिका अधिनियम की धारा-3 की उपधारा-3 के अन्तर्गत यह व्यवस्था है कि ‘‘इस धारा में किसी बात के होते हुए भी ऐसे किसी क्षेत्र को, जो छावनीहो अथवा किसी छावनी का भाग हो, इस धारा के आधीन संक्रमणशील क्षेत्र अथवा लघुत्तर नगरीय क्षेत्र घोषित नहीं किया जाएगा और न उसमें सम्मिलित किया जाऐगा।‘‘ सैनिक छावनी क्षेत्र में नागरिक सुविधाएं छावनी परिषद जो इन्डियन कैन्टोमेन्ट एक्ट के अन्तर्गत गठित की जाती हैं, द्वारा उपलब्ध कराई जाती हैं। उत्तराखण्ड में स्थित निम्न नगरीय छावनी क्षेत्र के निवासियों को नागरिक सुविधाएं उपलब्ध करानें का दायित्व छावनी परिषदों में निहित है।
उत्तराखण्ड में स्थित नगरीय छावनी क्षेत्रों की सूची


औद्योगिकनगर



यदि किसी औद्योगिक क्षेत्र में औद्योगिक प्रतिष्ठान द्वारा नागरिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही हों अथवा उपलब्ध कराई जानीं प्रस्तावित हों तो उन क्षेत्रों को नगर निकायों की परिधि से बाहर रखने की व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 243-थ में इस प्रकार की गई है, ‘‘ कोई नगर पालिका ऐसे नगरीय क्षेत्र या उसके किसी भाग में गठित नहीं की जा सकेगी जिसे राज्यपाल, क्षेत्र के आकार और उस क्षेत्र में किसी औद्योगिक स्थापन द्वारा दी जा रही या दिए जानें के लिए प्रस्तावित नगरपालिक सेवाओं और ऐसी अन्य बातों को, जो वह ठीक समझे ध्यान में रखते हुए, लोकअधिसूचना द्वारा, औद्योगिक नगरी के रूप में विनिर्दिष्ट करें।‘‘ उत्तराखण्ड में उपरोक्तानुसार दो औद्योगिक नगरी

जनगणना नगर (Census Town)



जनगणना के नियम और मानकों के अनुसार यदि किसी कस्बे अथवा आबादी क्षेत्र की लगभग तीन चौथाई अथवा उससे अधिक जनसंख्या का जीविकोपार्जन का आधार कृषि से भिन्न अन्य (गैर-कृषि) व्यवसाय है तो उस कस्बे अथवा आबादी क्षेत्र को सेन्सस टाउन (Census Twon) के रूप में चिन्हित कर दिया जाता है और सेन्सस टाउन की जनसंख्या को नगरीय जनसंख्या में सम्मिलित कर दिया जाता है। उत्तराखण्ड में वर्ष2001 की जनगणना के अनुसार सेन्सस टाउन की जनसंख्या भी उत्तराखण्ड की नगरीय जनसंख्या में सम्मिलित हैं।
उत्तराखण्ड में वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार जनगणना नगरों की सूची


जैसा कि उल्लेख किया जा चुका है इन सेन्सस टाउन की जनसंख्या उत्तराखण्ड की नगरीय जनसंख्या में सम्मिलित है। वर्ष2001 में उपरोक्त 12 सेन्सस टाउन में निवास कर रही 128545 जनसंख्या उत्तराखण्ड की 2170245 नगरीय जनसंख्या का 5.9 प्रतिशत थी। वर्ष1991 की जनगणना अवधि में कालागढ कस्बा जिसका क्षेत्रफल 5.99 वर्ग कि0मी0 और जनसंख्या 10527 थी, जनगणना नगर (सेन्सस टाउन) चिन्हित किया गया था। किन्तु वर्ष2001 की जनगणना अवधि में कालागढ कस्बा सेन्सस टाउन की श्रेणी में नहीं है जबकि कालागढ को अभी तब नगरीय क्षेत्र भी घोषित नहीं किया गया है। इसके विपरीत उधमसिंह नगर जिला में स्थित नगला ; चम्पावत जनपद के बनवसा और देहरादून जिले के रायपुर कस्बे को, जो वर्ष1991 में सेन्सस टाउन थे, वर्ष2001 की जनगणना अवधि में भी सेन्सस टाउन के रुप में चिन्हित किया गया है। किन्तु इन तीनों कस्बों को अभी तक नगरपालिका अधिनियम के अन्तर्गत नगरीय क्षेत्र घोषित नहीं किया गया है। वास्तव में सेन्सस टाउन कानूनी रूप से ग्रामीण क्षेत्र हैं एवं इन कस्बों के निवासियों को तब तक नगरीय क्षेत्र की सुविधाएं प्राप्त नहीं हो सकती हैं तब तक इन कस्बों को उ0प्र0 नगर पालिका अधिनियम की धारा-तीन के अन्तर्गत नगरीय क्षेत्र घोषित नहीं किया जाता है ।

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