Wednesday, March 4, 2009

भारत में आएगी शेयर बाजारों की बहार

भारत में आएगी शेयर बाजारों की बहार
इक्विटी कारोबार में कुछ नए खिलाड़ियों के आने से बदल सकती है तस्वीर

राजेश भयानी / मुंबई March 04, 2009
http://hindi.business-standard.com/hin/storypage.php?autono=15302





भारतीय शेयर बाजार की चाल-ढाल में आने वाले महीनों में बदलाव आ सकता है।

इक्विटी एक्सचेंज कारोबार में कई और खिलाड़ियों के कदम रखने की योजनाओं के बाद इस बात की पूरी संभावना है कि आगामी महीनों में बदलाव देखने को मिल सकता है।

इस कड़ी में जहां एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड से इक्विटी के कारोबार में उतरने की अनुमति मांगी है वहीं तीनों स्टॉक एक्सचेंज बांबे स्टॉक एक्सचेंज और नैशलन स्टॉक एक्सचेंज और एमसीएक्स-एसएक्स छोटे और मझोले उद्योगों के लिए इक्विटी कारोबार शुरू करने की योजना बना रहे हैं।

एनएसई और एमसीएक्स स्टॉक एक्सचेंज ने अनुमति मिलने पर इंटरेस्ट रेट डेरिवेटिव शुरू करने की योजना बना रही है। एक्सचेंज ट्रेडेड कॉर्पोरेट बॉन्ड बाजार को इक्विटी एक्सचेंज में ज्यादा खिलाडियों के आने से लाभ मिलने की संभावना बताई जा रही है।

गौरतलब है कि इक्विटी निवेश कुछ बड़े शहरों तक या यूं कहें तो कुछ राज्यों में ही सीमित होकर रह गया है। यहां तक की कारोबारी गतिविधियां भी कुछ ही कंपनियों में हो रही हैं। एमसीएक्स की इक्विटी बाजार को देश के छोटे से छोटे हिस्सों में ले जाने की योजना से इक्विटी बाजार की पहुंच में बढ़ोतरी होने की संभावना है।

एमसीएक्स ने इक्विटी कारोबार में उतरने केलिए भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) से अनुमति मांगी है और नियामक इसके प्रस्ताव पर विचार कर रहा है। गौरतलब है कि इस समय मौजूदा एक्सचेंजों में होने वाला 90 फीसदी तक का कारोबार में 100 कंपनियों की प्रमुख भूमिका होती है।

सेबी के आंकड़ों के अनुसार एनएसई में कुल कारोबार का 60 फीसदी से अधिक का हिस्सा दस प्रमुख शहरों से आता है और इनमें से तीन शहरों की हिस्सेदारी 5 फीसदी से ज्यादा है। करीब 60 फीसदी कारोबार सूचकांक आधारित डेरिवेटिव के जरिये होता है जो ज्यादातर निफ्टी से होता है।

एमसीएक्स के इक्विटी एक्सचेंज कारोबार में उतरने के साथ ही प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी जिससे बाजार डेरिवेटिव सेंगमेंट में नए उत्पाद आएंगे। इससे द्वितीयक बाजार में खुदरा और थोक कॉर्पोरेट बॉन्ड का कारोबार काफी सक्रि य हो जाएगा। तेजी से बदलते परिदृश्य में विदेशी निवेशकों पर से निर्भरता कम करने की जरूरत है जो केवल भारतीय निवेशकों की भागीदारी को बढ़ाकर किया जा सकता है।

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