Wednesday, March 4, 2009

कर्मचारियों को भी उठाना पड़ेगा ग्रुप मेडिकल इंश्योरेंस का खर्च

कर्मचारियों को भी उठाना पड़ेगा ग्रुप मेडिकल इंश्योरेंस का खर्च
1 Mar 2009, 1856 hrs IST, इकनॉमिक टाइम्स

एम वी रामसूर्य


मुंबई: मंदी के दौर में लागत घटाने की कोशिशें कर रही कंपनियां अब लगातार खर्च घटाने के उपाय खोजने में लगी हैं। इसी के तहत अब कंपनियां हेल्थ इंश्योरंस के बढ़ते बिलों का कुछ भार कर्मचारियों को भी उठाने को कह रही हैं। इस बीमा के प्रीमियम का भुगतान अभी तक कंपनियां खुद करती रही हैं।

पिछले दो सालों में बहुत सी विदेशी कंपनियों को खरीदने वाले बड़े कॉरपोरेट अब हेल्थ इंश्योरेंस कवर जैसी कर्मचारियों को दी जाने वाली सुविधाओं को लेकर अंतरराष्ट्रीय चलन अपनाना चाहते हैं। गिरते मुनाफे और बढ़ती लागत की वजह से ये अब कर्मचारियों को इस खर्च में योगदान देने के लिए कह रहे हैं।

पिछले एक वर्ष में ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस की कीमत में 15-20 फीसदी की वृद्धि हुई है। इससे पहले बीमा कंपनियां प्रॉपर्टी इंश्यारेंस कवर लेने पर कंपनियों को ग्रुप हेल्थ इंश्योरंस सस्ती दरों पर देने के लिए तैयार रहती थीं। लेकिन कीमतों पर प्रतिबंध (डिटैरीफिंग) के 2007 और 2008 में दो चरणों में समाप्त होने के बाद प्रॉपर्टी इंश्यारेंस की दरें काफी गिर गई हैं और कुछ मामलों में तो यह 80 फीसदी तक नीचे आ गई हैं। बीमा कंपनियों के पास अब ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस का घाटा पूरा करने के लिए प्रॉपर्टी इंश्योरेंस का मार्जिन मौजूद नहीं है।

टाटा ग्रुप और आदित्य बिड़ला ग्रुप जैसे विशाल कॉरपोरेट समूह और बड़ी आईटी कंपनियां हेल्थकेयर और अन्य कर्मचारी सुविधाओं में खर्च कम करने के तरीके खोज रही हैं। मार्श इंडिया के बिजनेस लीडर (हेल्थ एंड बेनेफिट्स प्रैक्टिस), कंचना टी के का कहना है कि कॉरपोरेट अब खर्च घटाने के साथ ही कर्मचारियों की भागीदारी बढ़ाने की भी कोशिश कर रहे हैं। मार्श पहली ऐसी कंपनी है जिसने बहुत से कॉरपोरेट के लिए लचीले बीमा लाभ कार्यक्रमों की शुरुआत की है। कंचना ने बताया, 'एक लचीली बीमा योजना में कर्मचारियों को मिलने वाले लाभ भी बढ़ जाते हैं क्योंकि इससे फायदों को लेकर कर्मचारियों की समझ और जिम्मेदारी बढ़ती है और उन्हें बिना अतिरिक्त कीमत चुकाए नए लाभ मिलने की संभावना भी रहती है। यह खर्च बांटने या हस्तांतरित करने का भी अच्छा जरिया है।' मार्श एक रिस्क एडवाइजरी फर्म है और यह भारत में हेल्थ और बेनेफिट प्रैक्टिस के कारोबार में है। मार्श अपनी सहायक कंसल्टिंग फर्म, मर्सर की बौद्धिक संपदा का इस्तेमाल करती है।

आमतौर पर ऐसे कार्यक्रम के तहत कंपनियां जहां कर्मचारी और उसके पति/पत्नी को कवर उपलब्ध कराती हैं, वहीं माता-पिता के बीमा का खर्च कर्मचारी को उठाना पड़ता है। कुछ मामलों में खर्च की भागीदारी समान या अलग अनुपात में होती है। हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम का लगभग 45 फीसदी कॉरपोरेट सेक्टर से आता है। इसका मतलब है कि भारत में कर्मचारी स्वास्थ्य बीमा के लिए अपने नियोक्ता पर ज्यादा निर्भर रहते हैं। इसमें कर्मचारियों के माता-पिता का बीमा भी शामिल होता है। कर्मचारियों के क्लेम में उनके अभिभावकों की हिस्सेदारी 60 फीसदी की होती है। कंपनियों को इसी वजह से ज्यादा प्रीमियम भी चुकाना पड़ता है।

कर्मचारियों को अभी तक कंपनी की ओर से मिलने वाली मेडिक्लेम सुविधा में उसी बीमा योजना को स्वीकार करता था जो कंपनी उन्हें देती थी। वैश्विक कंसल्टिंग फर्म, वाटसन वायट के भारतीय प्रमुख, कुलिन पटेल के अनुसार, 'लगभग 85-90 फीसदी कंपनियां अपने कर्मचारियों को सेवा के दौरान मेडिक्लेम की सुविधा देती हैं। इसके अलावा 20 फीसदी कंपनियां रिटायरमेंट के बाद भी यह सुविधा उपलब्ध कराती हैं। इसी वजह से इस बीमा का खर्च बढ़ने का असर कंपनियों के मुनाफे पर पड़ता है।'

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