Monday, November 30, 2015

https://youtu.be/E1qXD7NKMHU Viagra in Tea Spoon!चाय की कप में वियाग्रा! सत्यं शिवम् सुदरम्! सत्यमेव जयते! तमसोमाज्योतिर्गमय! देश में बढ़ती असहिष्णुता के मुद्दे पर आमिर खान, शाहरुख खान जैसे लोकप्रिय कलाकारों के बयानों पर उठे विवाद के बीच अभिनेत्री नंदिता दास ने भी देश के हालात पर चिंता जताई है। दुनिया रोज बदलती है और जिंदगी तकनीक! अतीत सुहाना है,हर मोड़ पर भटकाव भी वहीं! जिनने मेरा प्रार्थनासभा में गाधी की हत्या वीडियो देख लिया, उन्होंने जरुर गौर किया होगा कि नाथुराम गोडसे के उद्गार, हत्या की दलील की क्लीपिंग और गांधी हत्या के दृश्यों के मध्य बैकग्राउंड में मर्डर इन द कैथेड्रल का अविराम मंचन है।रेश्मा की आवाज है। गौर करें कि आर्कविशप की हत्या से पहले उसे देश छोड़ने का फतवा है और उसकी हत्या के औचित्य की उद्घोषणा है।यह दृश्य अब इंडिया लाइव का अतीत में गोता,ब्लैक होल गर्भ में महाप्रस्थान। मनुस्मृति शासन की जान का कहे,वहींच मनुस्मृति है। जाति खत्म कर दो, मनुस्मृति खत्म! ई जौन फ्री मार्केटवा ह,उ भी खत्म,चाय कप में वियाग्रा छोडो़ तनिको! फिर आपेआप बौद्धमय भारत। सनातन एकच रक्त अखंड भारत वर्ष


Viagra in Tea Spoon!चाय की कप में वियाग्रा! सत्यं शिवम् सुदरम्! सत्यमेव जयते! तमसोमाज्योतिर्गमय!

देश में बढ़ती असहिष्णुता के मुद्दे पर आमिर खान, शाहरुख खान जैसे लोकप्रिय कलाकारों के बयानों पर उठे विवाद के बीच अभिनेत्री नंदिता दास ने भी देश के हालात पर चिंता जताई है।

दुनिया रोज बदलती है और जिंदगी तकनीक!

अतीत सुहाना है,हर मोड़ पर भटकाव भी वहीं!


जिनने मेरा प्रार्थनासभा में गाधी की हत्या वीडियो देख लिया, उन्होंने जरुर गौर किया होगा कि नाथुराम गोडसे के उद्गार, हत्या की दलील की क्लीपिंग और गांधी हत्या के दृश्यों के मध्य बैकग्राउंड में मर्डर इन द कैथेड्रल का अविराम मंचन है।रेश्मा की आवाज है।


गौर करें कि आर्कविशप की हत्या से पहले उसे देश छोड़ने का फतवा है और उसकी हत्या के औचित्य की उद्घोषणा है।यह दृश्य अब इंडिया लाइव का अतीत में गोता,ब्लैक होल गर्भ में महाप्रस्थान।


मनुस्मृति शासन की जान का कहे,वहींच मनुस्मृति है।

जाति खत्म कर दो, मनुस्मृति खत्म!

ई जौन फ्री मार्केटवा ह,उ भी खत्म,चाय कप में वियाग्रा छोडो़ तनिको!


फिर आपेआप बौद्धमय भारत।


सनातन एकच रक्त अखंड भारत वर्ष और सनातन उसका धर्म हिंदूधर्म।पहिले मुक्ताबाजार का यह वियाग्रा छोड़िके बलात्कार सुनामी को थाम तो लें!

सध्याच्या परिस्थितीसाठी असहिष्णू हा शब्दही अपुरा – अरूंधती रॉय

महात्मा फुले यांच्या पुण्यतिथीच्या निमित्ताने अखिल भारतीय महात्मा फुले समता परिषदेतर्फे देण्यात येणारा यंदाचा

यावेळी रॉय म्हणाल्या, 'संपूर्ण उपखंडात रसातळाला जाण्याची स्पर्धाच सुरू झाली आहे आणि त्यात भारताचा उत्स्फूर्त सहभाग आहे. सगळ्या शिक्षणसंस्था, महत्त्वाच्या संस्थांमध्ये सरकारच्या मर्जीतील माणसे भरली जात आहेत. देशाचा इतिहासच बदलण्याचे प्रयत्न केले जात आहेत. धर्मातून बाहेर गेलेल्यांना आरक्षणाची लालूच दाखवून चालणारा 'घर वापसी'चा प्रकार क्रूर आहे. डॉ. आंबेडकरांच्या तत्त्वांचा त्यांच्याच विरोधात वापर करण्यात येत आहे. बाजीराव-मस्तानी चित्रपटावरून मोठा वाद होतो. मात्र पेशव्यांच्या काळात दलितांवर झालेल्या अन्यायाची चर्चाही होत नाही.' -


पलाश विश्वास

सच कहा है अरुंधति ने, जाति व्यवस्था को बनाये रखना ही ब्राह्मणवाद है

यह ‪#‎दंगा‬ फसाद और ग्लोबल आर्डर पर कब्जे का ‪#‎धर्मोन्मादी‬ ‪#‎मुक्तबाजारी‬ एजेंडा दरअसल हमारा ही खून बहाने का जुध महाजुध है

लहुलूहान ट्राडिशन लहूलुहान यह कायनात और यह कयामत का मंजर फासीवाद की कुंडली भी बांच लीजिये! गांधी की प्रार्थना सभा में हत्या!



कयामत का मंजर यहींच अरुंधति जो कह रही हैं वह सच है और इस अपकर्म में संसदीय पक्ष विपक्ष, रंगबिरंगी तमाम विचारदाराएं शामिल है जो दरअसल वंश वर्चस्व का अंग्रेजी हुकूमत का तोहफा…

बवाल मचाने के मास्टर उदय प्रकाश का ताजा उपहारः

तुझ पे दिल क़ुर्बान।

यह हिंदुस्तान का राष्ट्रगीत ' जन गण मन अधिनायक जय हे ' लिखने वाले, साहित्य के लिए एकमात्र भारतीय " नोबेल पुरस्कार' से सम्मानित कवि रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी ' काबुली वाला' पर आधारित फ़िल्म का गाना है। बलराज साहनी इसमें काबुलीवाला पठान थे। मैं जब कॉलेज भी नहीं पहुँच सका था, तब यह फ़िल्म देखी थी और आज तक इसका असर गहरा है।

मार्मिक।

दोस्तो। सुनें । पसंद न आये, तो भी कोई बात नहीं।

smile emoticon

Movie : Kabuliwala Music Director: Salil Chowdhary Singers: Manna Dey Director: Hemen Gupta. Enjoy…

Kabuliwala Songs - Balraj Sahni - Usha Kiran - YouTube

Oct 7, 2013 - Uploaded by Filmi Gaane

Movie : Kabuliwala Music DirectorSalil Chowdhary Singers:Manna Dey DirectorHemen GuptaEnjoy ...



जीएसटी की राह

जीएसटी विधेयक को लेकर चले आ रहे गतिरोध के दूर होने की संभावना से उद्योग-व्यापार जगत ने राहत की सांस ली होगी।

Authorजनसत्ताNovember 29, 2015 22:45 pm

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जीएसटी विधेयक को लेकर चले आ रहे गतिरोध के दूर होने की संभावना से उद्योग-व्यापार जगत ने राहत की सांस ली होगी। यह अप्रत्यक्ष करों की प्रणाली में अब तक के सबसे बड़े बदलाव की कवायद है। आर्थिक सुधार का यह एक बहुत महत्त्वाकांक्षी प्रस्ताव है। इसे लेकर कॉरपोरेट जगत के उत्साह की झलक एक बार फिर दिखी, जब सरकार और विपक्ष के बीच रजामंदी के आसार दिखने पर बीते शुक्रवार को सेंसेक्स चढ़ गया।

अपने अब तक के डेढ़ साल के कार्यकाल में शायद पहला मौका था, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसी मसले पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सीधी चर्चा के लिए आमंत्रित किया। दरअसल, सरकार ने अगले साल एक अप्रैल से जीएसटी को लागू करने का लक्ष्य घोषित कर रखा है। यह तभी संभव है जब जीएसटी से संबंधित विधेयक पर इसी सत्र में संसद की मुहर लगे। लोकसभा में यह विधेयक पारित हो चुका है, पर राज्यसभा में अटका हुआ है। राज्यसभा में राजग का बहुमत नहीं है।

फिर, यह संविधान संशोधन विधेयक है और सरकार जानती है कि विपक्ष के सहयोग के बगैर न यह पारित हो पाएगा न इसे क्रियान्वित किया जा सकेगा। मानसून सत्र के अनुभव से भी यह सबक मिला होगा। पिछले सत्र का काफी समय ललित मोदी प्रकरण और व्यापमं घोटाले पर विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ गया था। बहरहाल, सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह से बातचीत करके जीएसटी पर कांग्रेस से तल्खी दूर करने की प्रधानमंत्री की पहल सराहनीय है। अभी तक भाजपा इस तरह पेश आ रही थी जैसे जीएसटी की फिक्र केवल उसे है। जबकि इसकी पहल यूपीए सरकार ने की थी।

बरसों की कवायद के बाद भी जीएसटी को कानूनी जामा नहीं पहनाया जा सका, क्योंकि राज्यों के कई एतराज थे। भाजपा-शासित गुजरात ने भी कई दफा अपनी आपत्तियां जाहिर कीं, उस वक्त भी जब नरेंद्र मोदी वहां के मुख्यमंत्री थे। इसलिए विवाद केंद्र और संसदीय विपक्ष के बीच उतना नहीं, जितना केंद्र और राज्यों के बीच रहा है। जीएसटी के तहत राजस्व का नुकसान होने की राज्यों की आशंका दूर करने के लिए विधेयक में शुरू में उसकी भरपाई की व्यवस्था की गई। फिर भी तमाम राज्य राजी नहीं हुए तो भरपाई की अवधि बढ़ाई गई।

उनकी जिद पर कई वस्तुओं को जीएसटी के दायरे से बाहर करना पड़ा। प्रस्तावित कर-प्रणाली के तहत निर्णय प्रक्रिया में राज्यों को भी शामिल करने का केंद्र ने भरोसा दिलाया और इसके लिए विधेयक में जीएसटी परिषद के गठन का प्रावधान किया। लेकिन अब भी कई मसले अनसुलझे हैं, जैसा कि कांग्रेस की शिकायत से जाहिर है। कांग्रेस चाहती है कि जीएसटी की दर अठारह फीसद से अधिक न की जाए, एक फीसद अतिरिक्त कर का प्रावधान समाप्त कर दिया जाए और विवाद निपटारा प्राधिकरण स्थापित किया जाए।

इन मांगों को राजनीतिक वितंडा कह कर खारिज नहीं किया जा सकता। इन पर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए। कॉरपोरेट जगत को उम्मीद है कि जीएसटी से कोराबार में सहूलियत होगी। यह दावा भी किया जाता रहा है कि जीडीपी की दर बढ़ाने में जीएसटी मददगार साबित होगा। मगर महंगाई और राज्यों के राजस्व के कोण से भी इस पर विचार करना जरूरी है।


सहिष्णुता असहिष्णुता वाद विवाद की आड़ में भूमंडलीकरण की आंधी है।जीएसटी पर आम सहमति है।जीएसटी पर जेटली की दलीलें और राजनीतिक गोलबंदी हमने लाइव शेयर की है।लेकिन अरुंधति के वीडियो और पार्लियामेंट लाइव के वीडियो शेयर नहीं हो पाया तकनीकी अड़चन की वजह से।जैसा हमने वायदा किया है।इसका खेद हैं।सारे वीडियो,और हमारे वीडियो भी आनलाइन हैं।गुगल करके देख लें।


बहरहाल स्मार्टसिटी और पैकेज की लूट है!

बहरहाल विकास दर की छलांग है!

बेदखली की छूट है!बहरहाल

नंगी तलवारें चमकै खूबै!बहरहाल

फतवा बहार सहिष्णुता बहार!बहरहाल


बहरहाल रेटिंग एजंसियों के भी फतवे हैं!

बहरहाल वैश्विक इशारे भी फतवे  हैं!


झोंकके एफोडीआई!बहरहाल

ठोंकके विनिवेश!बहरहाल

पूंजीप्रवाह जलप्रलय!बहरहाल


बहरहाल कयामत का मंजर

संपूर्ण निजीकरण!बहरहाल

संपूर्ण ग्लोबीकरण!बहरहाल


कटे हुए हाथ हैं!

कटे हुए पांव हैं!

कटा हुआ दिल है!


कटा हुआ दिमाग!

फटा हुआ पैबंद चेहरा!

वजूद कबंध है!

नरमुंड नारियल है!

आत्मध्वंस का महोत्सव!


अंदरो शरणार्थी सैलाब ह!

बाहरो शरणार्थी सैलाब ह!


सैन्यराष्ट्र आईसिस!

आंतक के खिलाफो जुध!

आ बैल मुझे मार!

यहींच ग्लोबल आर्डर!

यहींच ओकुपाई द ग्लोबल आर्डर।

यहींच हिंदुत्व का एजंडा।


हर नन्ही सी जान आइलान!

प्रेम किया नहीं तो भुगत लो!

बीकानेरी अंजाम!बहरहाल

आज का वीडियो टाक मेै अपनी पुरानी भूमंडलीकरण कविताओं  के पाठ से शुरु कर रहा हूं और कोशिश रहेगी कि अरुंधति राय ने जो असल एजंडा ब्राह्मणवाद का बताया है,उसका आशय ब्राह्मणों को गाली नहीं है,हम यग जरुर साफ करें।अव्वल तो अरुंधती खुदै ब्राह्मण हैं और जाति उन्मूलन का नया पाठ जारी करते हुए उनकी प्रस्तावना बहुजनों को इसीलिए नागवर गुजरी है।सम्राट चंद्रगुप्त के गुरु ब्राह्मण हैं।हमारे गुरुजी भी ब्राह्मण हैं।


हम बंगाल में चंडाल आंदोलन के वंशज हैं और अछूत हैं ,इसीलिए शरणार्थी तो हैं ही,सीनियर मोस्ट,रेटिंग में टाप पर होने के बावजूद सबएडीटर रियार कर रहे हैं।हम लोग जो हमारा सत्यानाश कर रहे हैं,उनका विरोध करने में कोताही नहीं करते।लेकिन ब्राह्मणों को गरियाकर जाति व्यवस्था को वैधता और मजबूती देने का कोई मौका नहीं छोड़ते।


आप अमलेंदु को कोई मदद नहीं करते और यह भी नहीं समझते कि हम किन मुद्दों को संबोधित कर रहे हैं।हस्तक्षेप की सलीब पर रोज मैं टंगा होता हूं और मेरी जिस्म पर जख्मों के सैलाब,मेरे बहते खून की आपको परवाह नहीं है।


हस्तक्षेप की मदद मेरी मदद है,समझ लें।इसीतरह अरुंधती को नहीं पढ़ेंग या उनकी नहीं सुनेंगे,तो मुक्त बाजार का यह फंडा,कत्लेआम का नजारा समझ न पायेंगे।हम भले ही वीडियो टाक में आगे पीछे अरुंधती का कहा लिखा शामिल कर लें,जबतक न आप उन्हें बहुजनों के हित में न समझें,देखेंगे नहीं।


यह भी जातिवाद है।बहुजनों का यह आत्मघाती जातिवाद ही मनुस्मृति शासन को बहाल रखे हुए हैं।थोड़ा विज्ञान,थोड़ा इतिहास की समझ से चीजों को देखने की तहजीब सीख लें तो चीजें बहुत साफ हो जायेंगी और समझ में आ जाई कि दरअसल कौन दोस्त बा,कौनो दुश्मनो ह।बाकी सबकुछ ठीकठीक मुक्तबाजार।


उन्होंने मैसी साहेब में  अभिनेत्री बतौर कैरियर शुरु कर किया था  लेकिन उनका चेहरा कोई विश्वविजेता नहीं है और अंबेडकर की जुबान बोलकर बदलाव के ख्वाबों को वे जो जल जंगल जमीन से जोड़ने लगी हैं,इसलिए वे न आइकन है और न स्टार।

Noted author Arundhati Roy on Saturday alleged that the Narendra Modi-led government was "promoting Brahmanism" in the name of "Hindu Rashtravad",…


Going by respondents' admissions, untouchability is the most widespread among Brahmins, followed by OBCs.


अरुंधती राय दरअसल मुक्तबाजार के सौंदर्यबोध और व्याकरण तबाह कर रही हैं।सो, वह हमें इतनी प्रिय भी हैं।


कल ही हमने इस पर हस्तक्षेप पर त्वरित टिप्पणी की है जो शायद काफी नहीं है।फिर यह खुलासा।


हमारी अरुंधति के कहे का आशय कुलो इतना है कि यह जो जातिवाद है,वहीच ब्राह्मणवाद का तोता है।


मनुस्मृति शासन की जान का का कहे,वहींच मनुस्मृति है।

जाति खत्म कर दो,मनुस्मृति खत्म।


फिर आपेआप बौद्धमय भारत।


सनातन एकच रक्त अखंड भारत वर्ष और सनातन उसका धर्म हिंदूधर्म।पहिले मुक्ताबाजार का यह वियाग्रा छोड़िके बलात्कार सुनामी को थाम तो लें।


रचनाकर्म के लिए फूल मस्ती मोड जरुरी है ताकि दिलो दिमाग के सारे ऐप्पस खुद ब खुद खुलता चला जाये।रचनाकर्म से मजा न आये जिंदगी का,तो वह रचनाकर्म दो कौड़ी का नहीं है।


चार्ली चैपलिन हंसोड़ न होता तो न दार्शनिक होता और कलाकार।

रचनाकर्म में डिकेंस और लैंब की तरह पैथोस और ह्यूमर दोनों न हो,या फिर मंटो जैसा तीखापन और परसाई जैसा डंक न हो तो लिखना भी क्या और पढ़ना भी क्या।


पाठक,श्रोता की जुबान कुछ भी हो,भाषा की दीवारें लांघकर उसके दिलोदिमाग तक पहुंचने की कुव्वत न हो तो पिछवाड़ा दागकर महान जितनो बनो आप,हमारे हिसाब से आपकी औकात दो कौड़ी की भी नहीं।


दिलो दिमाग के सारे तार झनझना देना ही रचनाकर्म है और वहां वर्चस्व सिर्फ मुहब्बत का है।

घृणा निषिद्ध है।

फिर वहींच सत्यं शिवम् सुदरम्!

सत्यमेव जयते!

तमसोमाज्योतिर्गमय!


आज सुबोसुबो सविता बाबू यादों में फिर नई नवेली धनबाद के कोयलांचल चली गयी और हुक्म हुओ कि जलेबी सिंघाड़ा ले आओ और फिर होगा धनबाद का नाश्ता।


इस नेकी के लिए गर से निकला तो आठवीं की परीक्षा से फारिग एक दोस्त मिला जो दांतों में ब्रश फंसाये सड़क पर आदमरफ्त का जायका ले रहा था और हमउ टाइम मशीन में धड़ाक से अपने बचपन में।


हमारी भी आदत यही रही है कि सुबह का जायका खूब लिया जाये और उसी रोशनी,उसी ऊर्जा में बाकी दिन खपाया जाये।हाजतरफा के लिए सीधे नदीकिनारे।खेत से गन्ना उखाड़े दतौन।मटर की फलियां या खेत मा जो भी उगै हो,बिना मुंह हाध गोड़ वगैरह धोये उसीसे नाश्ता आउर फेर सगरे गांव में टहल के सबकुछ ठीकै बा।


इस हक की खातिर हमने बचपन में न जाने कितने गृहयुद्ध, चक्रव्यूह, युद्ध महायुद्ध फतह किये हैं रोशनी की खातिर।


मैंने पूछा कि अभी अभी उठे हो किया।

उनने जबाव में कहा,परीक्षा हो गयी है।नींदभर सोना है।


दुनियाभर के बच्चे मेरे दोस्त हैं क्योंकि वे दुश्मनी की तकनीक जानते ही नहीं हैं।


समझ लो कि दिलोदिमाग के सारे तार उन्हीं की मुट्ठी में।

सारे समुंदर उन्हींकी मुट्ठी में।

मुट्ठी में फलक।

हिमालय के उत्तुंग शिखर, नदियां, घाटियां, झरने यूं कि सारा कायनात।


फिर मेरे उस दोस्त ने कहा,मामा के घर जाना है।

कहां?

नैहाटी में।

नैहाटी में कहां?

पूरब तरफ।


पूरब तरफ कहां?बंकिम के घर के पास?कांठाल पाड़ा में?


कांठाल पाड़ा के उत्तर में।काठपुल के पार।जेखाने 29 हाथ कालीपूजा हय।सेखाने।उनने साहेब पाड़ा का भूगोल बताया।


फिर उनने बिना पूछे, औचक कह दिया,सैर सपाटे के लिए नहीं। साहेब पाड़ा में एक ठोंगे की दुकान है उसके वहीं इसी साल की पुरानी किताबें हैं नौवीं दसवीं की।वे खरीदनी हैं।


फिर क्या?नैहाटी का कांठाल पाड़ा और साहेबपाड़ा का पूरा भूगोल बसंतीपुर में तब्दील।जहां मैं परीक्षा में बैठने से पहले नई कक्षा की किताबें दबाकर पूरी पढ़ लिया करता था।


दूसरी में पढ़ता तो चौथी पांचवीं की किताबें मेरे खजाने में होतीं।पिताजी और चाचाजी के खजाने की चाबी भी मेरी मुट्ठी में।


मैंने अपना गरीब बचपन कोलकाता महानगर के हिस्से के बचपन के साथ शेयर किया और उनसे कहा कि कैसे दसवीं पास होने के बाद ही फूल पैंट पिन्हे।कैसे दसवीं पास होने के बाद ही जूते और घढ़ी के दर्शन हुए।


मैंने अपना गरीब बचपन कोलकाता महानगर के हिस्से के बचपन के साथ शेयर किया कि कैसे हम नदियां पार करके कीचड़ में लथपथ स्कूल पहुंचते थे और हमारे गांव के लोग कैसे अपढ़ थे कि हमें अपने बैलों भैंसो के साथ अंग्रेजी का अभ्यास करना होता था।


मैगी पित्जा बूस्टर से सजे इस बचपन को फटेहाल कंगाल उस बचपन के किस्से में मजा आया।


तो उनने कहा कि गाइड मैं नहीं पढ़ता।पहले टेक्स्ट पढ़ता हूं और फिर क्वेश्चन बैंक से सवालों के जवाब तलाशता हूं।


हमारे जमाने में भी कुंजी और गाइड होते थे और जिनके भरोसे हम कभी नहीं होते थे।


हमारी तकनीक बहुत सीधी थी,नौवीं दसवीं की परीक्षा इंटर की किताबों के ब्यौरेवार टेक्स्ट आत्मसात करके दो तो किला फतह! फिर ट्यूटर,टीचर का क्या काम?जो हमारे थे ही नहीं।


फिर  मेरे दोस्त ने बिना पूछे कहा कि टेक्स्ट दो बार पढ़ लेता हूं।फिर बंद करके सवालों के जवाब खोजते हुए लिखता हूं।लिखकर फिर देखता हूं कि गलती कहां हो गयी।गलती सुधारते न सुधारते किताबें नदी होकर बहने लगती हैं दिलोदिमाग में।


जैसे मैं खुद ही अपना साक्षात्कार कर रहा था!


किस्से हमेशा मजेदार होते हैं और अतीत बेहद सुहावना होता है।लेकिन अतीत को ही जीना बेहद खतरनाक होता है।


हम देख रहे हैं कि हम अतीतोन्मुखी देश में तब्दील हैं।


वह छोटा सा बच्चा परंपरा अर्जित करने की कवायद में है और अतीत से उसे कोई मोह नहीं है।


अतीत के मोह में वर्तमान बहुत तेजी से अतीत में तब्दील होता जा रहा है और भविष्य अंधकार में।


पुनरूत्थान के संदर्भ और प्रसंग ये ही हैं।


हमने नोबेल विजेता टीएस इलियट के इनडिविजुअल एंड ट्रेडिशन की मर्डर इन द कैथेड्रल और इसीके समांतर प्रार्थना सभा में गांधी की हत्या के संदर्भ और प्रसंग में अपने वीडियो टाक में सिलसिलेवार चर्चा की है।


जिनने वीडियो देख ली,उन्होंने गौर किया होगा कि नाथुराम गोडसे की हत्या की दलील की क्लीपिंग और गांधी हत्या के दृश्यों के मध्य बैकग्राउंड में मर्डर इन द कैथेड्रल का मंचन है।


गौर करें कि आर्कविशप की हत्या से पहले उसे देश छोड़ने का फतवा है और उसकी हत्या के औचित्य की उद्घोषणा है।यह दृश्य अब इंडिया लाइव का अतीत में गोता,ब्लैक होल गर्भ में महाप्रस्थान।


पंरपरा उत्तराधिकार नहीं है।मेधा विमर्श में जाति वर्ण आधिपात्य के कुतर्क का यह एक वैज्ञानिक जवाब है कि पंरपरा रेडीमेड नहीं होती और न परंपरा वैदिकी या मिथकीय है।इसीतरह इतिहास के भी संदर्भ और प्रसंग बदलते रहते हैं।


कालातीत होने के बाद मारे जाने वाली हर शख्सियत परंपरा में तब्दील हो जाती है और उसी परंपरा में निष्णात होकर ही परंपरा अर्जित की जाती है।परंपारा न उत्तराधिकार है और न वंश विरासत या वंश वर्चस्व और न अतीत का अनुचित महिमामंडन है परंपरा।


दुनिया रोज बनती बदलती है और इतिहास के संदर्भ और प्रसंग उसीतरह बदलते हैं जैसे हमारी मुट्ठी से वर्मान फिसलकर अतीत के ब्लैकहोल में समा जाता है और इंद्रधनुषी उस अतीत के पुनरूत्थान की कोई भी कोशिश हमें सीधे ब्लैकहोल में फेंक देती है।


जिंदगी तकनीक है और सच पूछिये कि तकनीक उतनी बुरी भी नहीं है।तकनीक तो आपकी इंद्रियों की तरह हैं।यह आपके विवेक पर निर्भर है कि आप अपनी इंद्रियों का इस्तेमाल कैसे और क्यों करते हैं। अब बिना तकनीक हम एक कदम चल नहीं सकते जैसे विज्ञान का विरोध विकास का पर्याय नहीं है और न विप्लव का।


चूंकि विप्लव अंतरात्मा की आवाज है तो वैज्ञानिक दर्शन के साथ ही सामाजिक यथार्थ का महाविस्फोट भी है।


कल मुझे खूब हंसने को जी हुआ।साहिबे किताब बनने की न मेरी औकात है और न मेरी मंजिल।जब तक मुझे छापा जाता रहा है,मुझे भी खुशफहमी रही है कि मेरी किताबें भी निकल सकती हैं।


छपना बंद हो गया अमेरिका से सावधान अधूरा छोड़ते न छोड़ते।उसे पूरा इसलिए नहीं किया और न करने का इरादा है क्योंकि हम सावधान किसे करें ,क्यों करें,क्योंकि देश नई ग्लोबल स्थाई बंदोबस्त के तहत वही अमेरिकी उपनिवेश में तब्दील हैं और गुलाम आपकी हर्गिज नहीं सुनेंगे।


मंकी बातें वे भक्तिभाव से सुनते देखते हैं,हमारी काम की बातें उन्हें पसंद हैं नहीं।अंध भक्तिबाव आत्मध्वंस का सबसे अच्छा तरीका।


कल हंसी इसी बात पर आयी अपने साहित्यकारों की हत्या पर खामोश साहित्य अकादमी ने रवींद्र समग्र प्रकाशित किया है जो बांग्ला में सत्ता वर्ग की ओर से जमींदारियों रियासतों के वंश वर्चस्व के औचित्य के मुताबिक रंवींद्र विमर्श है।


करीब दस साल पहले हमने अपने महा आदरणीय कामरेड कवि से आखिरीबार पूछा था कि चूंकि हम दिल्ली प्रेस क्लब में आराम से पांडुिपि पर चर्चा कर लेने की फुरसत और तहजीब में नहीं है तो कृपया बतायें रवींद्र के दलित विमर्श का हुआ क्या आखिर।


उन्हींके तगादे पर लिखी थी वह किताब जो मैंने उन्हीं के हवाले कर दी थी।तब उनने कहा था कि पांडुलिपि के संपादन उन्होंने एक रवींद्र विशेषज्ञ के हवाले किया है।जल्दी ही किताब छप जायेगी और प्रकाशक चेक भेज देंगे।


न चेक आया,न किताब छपी और ने वह पांडुलिपि लौटी।


हैरत की बात मेरे लिए यह है कि जिन बिंदुओं पर मेरा रवींद्र का दलित विमर्श है,अकादमी कि किताब में उन्हें छुआ तक नहीं गया है।इन्ही रवींद्र विशेषज्ञ को पांडुलिपि जांचने को दिया गया था और रवींद्र समग्र के संदर्भ में कहना होगा कि इसमें नया जैसा कुछ भी नहीं है वैसे भी शायद चोरी का भी कुछ नहीं है।


शुक्र है,संकलन मौलिक है।जो माल समाज और समय के लिए खतरनाक हो,उसे उठा लेना और भी खतरनाक है।


वे उठा लेते तो हमें बेहद खुशी होती।हमें मुद्दों से मतलब है और नाम जितना है,उसीसे कम गालियं नहीं पड़ती हैं।आगे नाम और हुआ तो क्या पता,आखेरे अंजाम क्या हो।


जो मेरा लिखा छापते नहीं,बल्कि दबाते हैं वे इस मायने में हमारे शुभाकांक्षी हैं कि वे मुझे बेमतलब के खतरों से बचा रहे हैं।


बहरहाल साहित्य अकादमी के इस रवींद्र समग्र और रवींद्र विशेषज्ञता पर मैं निहाल हूं और फुरसत मिले तो गपशप के लिए कामरेड कवि के साथ दिल्ली प्रेस क्लब में शाम को बैठ भी सकता हूं।18 मई के बाद मेरे लिए फुरसत ही फुरसत है।


वैसे मैं उनका आभारी भी हूं कि पांडुलिपि के जो अंश मेरे पास उपलब्ध हैं,उन्हें पढ़कर मुझे कुछ ठीक भी नहीं लग रहा है।यह मामला इतने सस्ते में निपटाने का सौदा था ही नहीं।


जाहिर है कि करीब बारह तेरह साल की अवधि में मैं रुका भी नहीं हूं और परंपरा में मेरी डुबकी का सिलसिला थमा भी नहीं है।


मुद्दा यह है कि रवींद्र विमर्श बेहद अनिवार्य है क्योंकि वह धर्मोन्मादी अतीतमुखी भारत के बचाव का एटम बम भी है।

उसका इस्तेमाल हड़बड़ी में तो होना ही नहीं चाहिए।


थैंक्यू,कामरेड कवि,आपने मुझे हड़बड़ी में एटम बम दागने से बचा लिया।यकीन भी कर लीजिये कि अब मेरी कोई किताब छपेगी नहीं और न हमें इसका कोई अफसोस भी होगा।


दरअसल हम तो किस्सागो हैं।किस्सा बांच दिया,बस।किस्सा कहां पहुंचा,नहीं पहुंचा,इसका कोई सरोकार मुझसे नहीं है।


किस्सागोई बहुत बुरी आदत है।देखिये न मैं कैसे कपास ओटने लग जाता हूं।मुझे बातें बेहद जरुरी करनी थीं लेकिन लग गया किस्सा बांचने।गंभीर बातें करने का मौका भी नहीं है।

देश में बढ़ती कथित असहिष्णुता के मुद्दे पर आमिर खान, शाहरुख खान जैसे लोकप्रिय कलाकारों के बयानों पर उठे विवाद के बीच अभिनेत्री नंदिता दास ने भी देश के हालात पर चिंता जताई है।





Wednesday, December 9 at 3:00am






  


  






सेमीनार: असहिष्णुता की चुनौती और सोशल मीडिया hastakshep.com के पांच साल पूरे होने व मानवाधिकार दिवस की पूर्व संघ्या पर शाम 3 बजे बुद्धवार, 9 दिसंबर 2015 यूपी प्रेस क्लब लखनऊ, उत्तर प्रदेश नागरिक प...


EPFO wants to invest more in govt securities

Surya Sarathi Ray23 hours ago

Recent attempts to revamp the Employees' Provident Fund Organisation's (EPFO) investment pattern with a gradual shift to riskier, higher-yielding instruments have run into hurdles. While whatever measly sum the EPFO has invested in the stock market since August has yielded an annualised return of just 1.5%, causing the trade unions to say ?I told you so?, the retirement body has now said it would fall way short of the newly-prescribed limit of mandatory exposure to corporate credits due to a dearth of such instruments that yield returns higher than even state government securities.

FE has learnt that the EPFO has sought the finance ministry?s permission to tweak the new investment pattern for the current fiscal to allow up to 100% exposure in favour of state development loans (SDLs) or government securities from the current limit of 45-50%.

As per the formula notified by the labour ministry on April 23 this year, EPFO will invest a minimum of 35% and a maximum of 45% of fresh accretion, estimated at R1,15,000 crore, in corporate credits.

However, in the first five months of the current fiscal, the EPFO has so far been able to invest only R7,600 crore in corporate credits ? both public sector as well as private ? including investment in bank-term deposits. This leaves another R32,650-44,150 crore additional investment to be made in the remaining seven months to comply with the prescribed norm.

?During the financial year, there has been a serious mismatch in the demand and supply of corporate credits. The attainment of the (prescribed) percentage of investment appears to be very difficult, rather, the same may not be possible without compromising on the rate of return on the investments made by EPFO,? reads the agenda note of the EPFO trustees? recent meeting. ?It is against common sense of investment to make investment in corporate credits having lower security and lower rate of interest as against SDLs having both higher interest and higher security in the prevailing market conditions,? it added.Analysts, however, said the contingency of initial exchange-traded funds returns being low?these investments are meant to be long-term?or a transient demand-supply mismatch in the corporate debt securities market should not be a reason for changing the new investment formula and returning to the conventional pattern.

?We hope that the ministry of finance will agree to higher percentage of investment in government securities or SDLs for this financial year,? said a senior EPFO official. However, he added that higher allocation to G-Secs/SDLs would be made particularly if the rate of AAA corporate credit of PSUs remain below the SDL rates.

As per the latest norms, besides investing 35-45% in corporate credits, the EPFO will invest 45-50% of its incremental deposits in government securities and related investment and another up to 5% into money market instruments. Prior to the change, the EPFO was required to investment up to 40% in corporate debt securities and term deposit of banks.

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The rate of interest on the corporate credits has gone down considerably. In fact, for the last one month, SDLs issued by various state governments that are secured through the mechanism of automatic debt by the Reserve Bank of India have been fetching a higher rate of return compared with corporate credits.

The EPFO?s idea of pruning exposure to corporate credits first came up in the August 21 meeting with the portfolio managers where it was decided that for the current fiscal, investments in SDLs may be permitted beyond the maximum percentage prescribed in the pattern of investment. The proposal was discussed threadbare in the meeting of the central board of trustees on August 26 where it was decided that a proposal should be made to the department of financial services, ministry of finance, to allow investment in government securities and SDLs up to 100%.

Meanwhile, the Finance, Investment and Audit Committee of the EPFO in its meeting held in April last year had allowed investment in private corporate credits having a minimum of dual AA+ rating.

The issue has been referred to an expert committee headed by Arun Kaul, which is yet to submit its report. However, as the final report is pending, the EPFO has proposed to invest in bonds and term deposits of dual AA+ private schedule commercial banks with certain conditions.


We had to dramatise our protest for visible impact, said Vajpeyi.


नई दिल्ली। सुपर स्टार आमिर खान की पत्नी किरण राव द्वारा देश छोड़कर जाने की इच्छा जताने के बीच यह जानना रोचक होगा कि अमीर तेजी से देश छोड़कर विदेश में बसते जा रहे हैं। एक…


Parliament LIVE: Lok Sabha to debate 'rising intolerance' today

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महमूद मदनी का ब्लॉग: प्रधानमंत्री जी, सूफी ही नहीं, इस्लाम के हर पंथ का है शांति में यकीन

28 Nov 2015 13:34 pm | महमूद ए मदनी



जिंदाबान..दीवारें जिंदाबान!

दीवारें जो गिरायें,वो उल्लू दा पट्ठा!

इसीलिए इतिहास लहूलुहान,पन्ना दर पन्ना खून का सैलाब!

लहुलुहान फिजां है

लहुलुहान स्वतंत्रता

लहुलुहान संप्रभुता

लहूलुहान इनडिविजुअल

लहुलूहान ट्राडिशन

लहूलुहान यह कायनात

और यह कयामत का मंजर


फासीवाद की कुंडली भी बांच लीजिये!

गांधी की प्रार्थना सभा में हत्या! Murder in the Cathedral! Rising Fascism and the Burnt Norton!


कैंटरबुरी कैथेड्राल में आर्कविशप की जो हत्या हुई और फासीवाद के शिशुकाल में जो इलियट ने इसे गीति नाट्य बना दिया,उसे समझने के लिए प्रार्थना सभा में राम नाम जाप रहे असल हिंदू धर्म के सबसे बड़े धार्मिक नेता की हत्या और आज भी हत्यारे के भव्य राममंदिर की कथा समझने के लिए कैथेड्राल में आर्कविशप की हत्या की इस क्लासिक कथा पर चर्चा बेहद  जरुरी है।

थीम सांगःसूफी संगीत और बाउल गीत


हमने टुवेल्फ्थ नाइट के जरिये लोक धर्म पर्व टुवेल्फ्थ नाइट की प्रासंगिकता पर चर्चा की दो कारणों से।पहला तो यह कि अमेरिका की भावभूमि में जो नई दुनिया बनी और बन रही है,महारानी एलिजाबेथ के स्वर्णकाल के आगे पीछे सबकुछ सुधारो अभियान के तहत चले प्यूरिटन उसकी वास्तविक कोख है।इसीकी अगली कड़ी मर्डर इन द कैथेड्रल है और हमारे अत्यंत प्रिय कवि टीएस इलियट ने अपना गीति नाट्य 1170 में कैंटरबरी कैथेड्राल में हुई आर्क विशप थामस बैकेट की कथा पर लिखी तो असहिष्णुता के तूफान से वे भी नहीं बचे।



Twelfth Night


Hay O Rabba Nai Laghda Dil Mera - Reshma - Dailymotion

www.dailymotion.com/.../xw4crj_hay-o-rabba-nai-laghda-dil-mera-resh..

अकादमिक चर्चा जो शायद छात्रों के लिए बेहद काम की चीज हो और इसके साथ ही इस हत्या के समांतर गांधी हत्या का आंखों देखा हाल और नाटक का मंचन भी मूल टेक्स्ट के साथ शामिल करेंगे।


सुनते रहे हमारे प्रवचन मोक्ष के लिए और मुक्ति मार्ग पर कदम मजबूती के साथ बिना इधर उधर भटके,तेज तेज चलें इसके लिए पढ़ते रहें हस्तक्षेप।


इस प्रस्तावना के साथ मूल चर्चा विजुअल ही होगी।

संदर्भ मूल अंग्रेजी में इस आलेख के साथ नत्थी होंगे।



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